हरियाणा में शिक्षा का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है। सरकार और विभाग चाहे कितनी ही कोशिश करले लेकिन सरकारी स्कूलों में हर साल छात्रों की संख्या घटती जा रही है।
अगर पिछले 6 साल की बात की जाए तो प्रदेश में 6 लाख से अधिक छात्रों ने सरकारी स्कूलों से मुंह मोड़ लिया है। खास तौर पर प्राथमिक विधालयों में बच्चों की संख्या में भारी कमी आ गई है।
बच्चों को सरकार स्कूलों में लाने के लिए शिक्षा विभाग नाकाम है तो दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूलों की भारी भरकम फीस के बावजूद भी अभिभावक बच्चों को निजी स्कूलों में भेज रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह सरकारी स्कूलों में सुविधाओं और शिक्षकों की कमी है।
बच्चों को सरकारी स्कूलों की ओर ले जाने में अभी तक शिक्षा विभाग नाकाम रहा है। प्राईवेट स्कूलों की भारी भरकम फीस और कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण भी ज्यादातर अभिभावक बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने की बजाय निजी स्कूलों में ही भेज रहे हैं।
सरकारी स्कूलों में बच्चों को किताबें, खाना, ड्रेस और साइकिल तो मिलती है लेकिन यहां पर शिक्षा की कोई गांरटी नहीं है। ऐसे में औसतन हर साल करीब एक लाख छात्र सरकारी स्कूलों से मुंह मोड़ रहे हैं।
साल 2012- 013 में जहां सरकारी स्कूलों में पहली से बाहरवीं कक्षा तक कुल 27.29 लाख बच्चे थे, वहीं इस सत्र में यह 21.20 लाख ही है। साल 2015-16 में ही चार लाख से अधिक बच्चे सरकारी स्कूलों में जाना बंद कर गये।
बच्चों का पलायन रोकने के लिए शिक्षा विभाग ने सर्व शिक्षा अभियान, एसएसए और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के सहयोग से प्लान तैयार किया गया है ताकि बच्चे प्राइवेट स्कूलों की बजाए सरकारी स्कूलों में ही पढ़ें।
इसके लिए राजकीय विधालयों को कान्वेंट कल्चर की तरह विकसित करने की योजना बनाई है। बच्चों को बैठने के लिए डेस्क, लाइब्रेरी, टाइलेट, प्ले ग्राउंड की सुविधाएं दुरुस्त करने की कवायद शुरु हो चुकी है। बच्चों का हेल्थ चैकअप भी स्कूल में ही कराया जाएगा।