Karamjeet Virk, Yuva Haryana
Karnal, 21 Nov, 2018
ऐ दुनिया वालों मेरी जुबान आप नहीं समझते। लेकिन मैं प्यार की भाषा समझता हूं। ये हरिप्रसाद ही ले लो। एक बार प्यार से दुलारा था। मेरा हाल जाना था। मुझे बरसात से बचाया और दो दाने मुंह में डाल दिए थे। देखा तो और लोगों ने भी था, लेकिन जब मैं सर्दी से कांप रहा था, सांस मंद हो रही थी, तब ध्यान तो इस हरि ने ही दिया। बस उस दिन से ही मेरी और हरि की दोस्ती हो गई।
इस चायवाले का भी तोते पर ऐसा दिल लगा कि अब यह तोता दिन में तीन बार हाल- चाल जानने आता है और दूध पीता है, चीनी भी खाता है। इतना ही नहीं मट्ठी तो इसके पसंदीद हो गई है। कभी तोते को सेब मिलता है, तो कभी बालूशाही। खाने की मौज है।
चलिए आपको पूरा मामला बताते हैं। यह कहानी एक तोते व चाय वाले की है। ढाई माह पहले रिमझिम का मौसम था। एक नन्हा परिंदा मीनार रोड पर चाय के खोखे पर गया। बरसात में भीग कर सर्दी से कंपा रहा था। चाय बनाने वाले हरिप्रसाद की निगाह उस पर पड़ी, तो उसे
सहलाया। दो दिन तक उसकी देखभाल भी की।
जब वह ठीक हो गया, तो आसमान में छोड़ दिया। उस दिन से वह दिनभर कहीं भी आसमान को नापता फिरता, लेकिन सुबह का नाश्ता, दोपहर व रात का खाना यहीं आकर खाता है।
हरिप्रसाद चायवाला रोजाना अपने दोस्त का बेसब्री से इंतजार करता है। हरिप्रसाद चायवाले के पास चाहे चाय पीने वालो की लाइन लगी हो, लेकिन जेसे ही उसका दोस्त तोता आसमान को नापकर वापिस हरिप्रसाद के पास आता है, हरिप्रसाद सब कुछ छोड़ उसे भोजन खिलाता है।
आज की इस भीड़ -भाड़ वाली दुनिया में जहा इंसान को इंसान दो मिनट का समय नहीं दे पता। वहीं हरिप्रसाद चायवाले और तोते की दोस्ती देख सब लोग सोचने को मजबूर है ,काश इस तरह की दोस्ती सब को मिले।