Yuva Haryana,
Chandigarh, 02 Mar,2019
इनेलो ने सुप्रीम कोर्ट के उन निर्देशों का स्वागत किया है जिसमें प्रदेश सरकार द्वारा पंजाब भूमि संरक्षण बिल, 2019 (पीएलपीए) के संशोधन को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए उस पर आगे कार्यवाही करने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने सरकार के इस संशोधन पर टिप्पणी करते हुए इसे अविवेकपूर्ण करार दिया है।
कोर्ट की टिप्पणी के बाद इनेलो प्रदेशाध्यक्ष अशोक अरोड़ा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि उन्हें तुरंत नैतिकता के आधार पर अपने पद से त्याग-पत्र दे देना चाहिए।
अशोक अरोड़ा ने याद दिलाया कि विधानसभा के अभी हाल के सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान इनेलो विधायको ने पीएलपीए के प्रस्तावित संशोधन पर कड़ी चिंता व्यक्त की थी यह संशोधन प्रदेश की प्राकृतिक संपदा और पर्यावरण के संतुलन को खत्म करने वाला था। किंतु यह खेदजनक और अशोभनीय था कि इनेलो द्वारा प्रदेशहित में जाहिर की गई चिंता और चेतावनी को मुख्यमंत्री ने नजरअंदाज किया।
आखिरकार माननीय कोर्ट ने मनमर्जी पर रोक लगाते हुए चेतावनी दी कि इस बिल के संदर्भ में यदि सरकार ने कोई और कदम उठाया तो उसे कोर्ट की अवमानना माना जाएगा।
इनेलो प्रदेशाध्यक्ष ने कोर्ट की उस टिप्पणी का भी जिक्र किया जिसमें सरकार द्वारा अपने चहेते लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया फैसला बताया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि यह कोई पहला मामला नहीं है जब कोर्ट ने मुख्यमंत्री की कारगुजारियों पर सवाल उठाए हों। इससे पहले भी दादम खनन मामले में कोर्ट सरकार द्वारा नियमों को ताक पर रखकर निजी लोगों को लाभ पहुंचाने की बात कहकर सीएम के भ्रष्टाचार में संलिप्त पाए जाने का इशारा कर चुकी है। अरोड़ा ने खट्टर सरकार को प्रदेश में घोर पूंजीवाद को बढ़ावा देने का दोषी भी कहा।
इनेलो प्रदेशाध्यक्ष ने भाजपा पर पर्यावरण और जीव हितैषी होने का ढ़ोंग करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में लगभग 3 प्रतिशत से भी कम वन्य क्षेत्र बचा है जिसे सरकार बर्बाद करना चाहती है। पीएलपीए संशोधन कर वन्य संपदा के खनन का हक देकर सरकार प्रोपर्टी डीलरों और बिल्डरों को लाभ पहुंचाना चाहती है।
सरकार के इस फैसले का खमियाजा अरावली और मोरनी हिल्स की वन्य संपदा को भुगतना पड़ता था। वहीं गुरुग्राम, रेवाड़ी, फरीदाबाद और शिवालिक का तलहटी का क्षेत्र इससे ज्यादा प्रभावित होने थे।
अरोड़ा ने माननीय कोर्ट के उस वक्तव्य पर भी प्रतिक्रिया दी जिसमें याद दिलाया गया है कि विधायिका का वर्चस्व ही सबसे अधिक नहीं है। उन्होंने कहा कि कानून और संविधान से बड़ी कोई सरकार नहीं है लेकिन मौजूदा सरकार अपने सत्ता प्रभाव से नियमों में बदलाव कर कानून और संविधान का निरादर कर रही है।