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Yuva Haryana, Chandigarh
इनेलो नेता अभय चौटाला ने सरकार को सब्सिडी के मुद्दे पर घेरा है। उन्होंने कहा कि आग का दरिया पार करने से कम नहीं, सात हजार रुपए सब्सिडी हासिल करना। सात हजार रुपए सब्सिडी के लिए किसान को कड़े नियमों से गुजरना होगा। मुख्यमंत्री जी ने किसानों को धान की फसल न लगाने के बारे अपना व्यक्तित्व देते हुए कहा है कि अगर किसान पैसे की चिंता करेगा तो मूल उद्देश्य से पीछे रह जाएगा।
इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला ने मुख्यमंत्री जी के इस कथन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि क्या किसान के पेट नहीं लगा कि वह पैसे की चिंता न करें। सरकार लाकडाउन के एक माह बाद ही झोली फैलाकर मांगने लगी थी। इनेलो नेता ने कहा मुख्यमंत्री जी का यह कहना कि कि धान का पैसा तो पानी की तरह बह जाता है। शायद सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे राजनेताओं को तो पैसे की क़ीमत का पता नहीं होगा परंतु किसान का पैसा तो खून-पसीने की कमाई है यह कोई हराम की कमाई नहीं जो पानी की तरह बह जाएगा।
इनेलो नेता ने कहा कि अब तक तो प्रदेश का किसान सरकार द्वारा ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ पोर्टल के अनुसार धान की जगह अन्य फसलें बोने पर सात हजार रुपए प्रति एकड़ सब्सिडी मिल जाना, बड़ा आसान सा काम समझ रहे होंगे लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है, ये सात हजार पाने के लिए किसान को खून के आंसू बहाने पड़ेंगे और ये सरकारी फरमान कितना पेचिदगियां से भरा पड़ा है, इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं। इस योजना बारे प्रदेश के मुख्यमंत्री आजकल समाचार-पत्रों में खूब बयानबाजी कर रहे हैं लेकिन इसका कटु सत्य यह है कि मुख्यमंत्री जी कुछ और कह रहे हैं जबकि एग्रीकल्चर विभाग के पोर्टल पर कुछ और ही है, जो बिल्कुल एक-दूसरे के विपरीत है।
वास्तव में सच्चाई क्या है, कि ये सात हज़ार किन-किन किसानों को कब और कैसे मिलेगा, इस बारे प्रदेश के किसानों को जानना अत्यावश्यक है। हरियाणा में करीब आठ ब्लॉक ऐसे हैं जहां पानी आठ मीटर से भी नीचे चला गया है। सरकारी आदेशानुसार इन ब्लॉक्स में किसान अपनी कुल भूमि में से 50 फीसदी से ज्यादा में धान नहीं लगा सकते और 50 फीसदी में अन्य फसलें ही बोनी पड़ेंगी। सरकार की ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना किसानों के लिए आग का दरिया पार करने जैसी है।
इनेलो नेता ने बताया कि सरकार के इस सात हजार रुपए वाले जुमले को किसान द्वारा समझ पाना बहुत दूर की कौड़ी है। जैसा कि जिस किसान के पास आठ एकड़ जमीन है और किसान सोच रहा है कि वह एक-दो एकड़ में धान के अलावा दूसरी फसलें बीज लेगा और सरकार उसे 7 हजार रुपए प्रति एकड दे देगी, ऐसा नहीं है। दरअसल, किसान को अपनी कुल भूमि में से आधी पर मक्का की फसल उगानी ही होगी, तब कहीं उसको प्रति एकड़ सात हजार रुपया मिल पाएगा।
उन्होंने बताया कि पोर्टल के अनुसार जिस किसान ने अपने खेत में 50एचपी या इससे ज्यादा की मोटर ट्यूबवैल पर लगाई हुई है वो किसान भी धान की बिजाई नहीं कर सकेंगे और उनके लिए सभी किस्म की सब्सिडी आदि की योजनाएं नदारद रहेंगी। इसके अलावा अगर इन आठों ब्लॉक्स में किसान धान की फसल लगायेंगे और अन्य फसलें नहीं बोएंगे, सरकार उस धान की फसल की खऱीद ही नहीं करेगी। और इन किसानों को भी सरकार की किसी भी योजना का कोई लाभ नहीं मिलेगा। मक्के का बीज प्रदेश के किसान ने किस कंपनी का और कहां से खऱीदना है यह भी सरकार ही बताएगी। मक्के व अन्य फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार अनिवार्य तौर पर खऱीद करेगी अथवा नहीं, अभी तक सरकार ने इस बारे विश्वास नहीं दिलवाया है।
इनेलो नेता ने कहा कि पोर्टल के अनुसार किसान को जो सात हजार रुपए मिलने हैं वो भी दो किस्तों में मिलेंगे।
आपको कुल रकम में से मात्र 25 फीसदी तो तब मिलेगा जब आप ‘धान’ के अलावा आधी जमीन पर ‘मक्का’ की बिजाई कर देंगे, और सरकार उसकी वैरीफिकेशन करेगी। बकाया 75 फीसदी पैसा किसान को तब मिलेगा जब ‘मक्का’ की फसल पक जाएगी अर्थात् कटाई से कुछ सप्ताह पहले। उन्होंने बताया कि (पोर्टल के अनुसार) इस योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ के तहत अपनी फसलों का बीमा करवाना भी आवश्यक होगा अन्यथा वो इस लाभ से वंचित रहेंगे। फसल बीमा कब करवाना है, इसकी तिथि भी सरकार ही निश्चित करेगी और अगर कोई किसान फसल बीमा नहीं करवाता तो जो दूसरी किस्त किसानों को मिलेगी, उसमें से जबरन फसल बीमा योजना का पैसा काट लिया जाएगा। अगर फसल का बीमा नहीं करवाया तो किसानों को फसलों के नुक़सान का मुआवज़ा नहीं मिलेगा।
इनेलो नेता ने कहा कि भाजपा-जजपा की सरकारी नीतियां किसान विरोधी हैं और इनका एक ही मक़सद है कि किसान को आर्थिक तौर पर किस तरह कमज़ोर किया जाए। विभिन्न प्रकार के नामों के पोर्टल बनाकर किसानों को लूटने का प्रयास किया जाता है। इनेलो किसानों के खून पसीने की कमाई को किसान विरोधी सरकार के हाथों नहीं लुटने देगी जिसके लिये उसको बेशक कितनी ही बड़ी क़ुर्बानी क्यों न देनी पड़े।
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